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साल था 1826, जगह थी उस समय के पंजाब के साहीबाल जिले का हड़प्पा गांव। उस समय भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था। ईस्ट इंडिया कंपनी में चार्ल्स मैसन नाम का एक अधिकारी था। उसे नई-नई जगहों को खोजने में और साथ ही इतिहास में बेहद दिलचस्पी थी। इसी खोज में एक दिन उसने पंजाब के गांव हड़प्पा में एक टीला देखा। देखने से उसे वह टीला किसी ऐतिहासिक महत्व नमूना लगा। चार्ल्स ने काफी सारा इतिहास पढ़ रखा था इसलिए उसने अपने उसी ज्ञान के हिसाब से अंदाज़ा लगाया कि यह टीला चौथी सदी ईसा पूर्व में सिकंदर के समय का होगा। इसके बाद अलैक्जेंडर बर्न्स नाम के एक और अधिकारी ने इस जगह की यात्रा की। लेकिन तब तक इस टीले के बारे में किसी को सही-सही जानकारी नही हो पाई थी, न ही कोई यह अंदाज़ा लगा पाया कि वह कितना इम्पॉर्टेंट है।
फिर आया साल 1853। भारत में ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप के एक इंजीनियर अलैक्जेंडर कनिंघम ने इस जगह की यात्रा की। लेकिन वह भी इस जगह की महत्ता को पहचानने में नाकाम रहे। दोबारा साल 1872 में अलैक्जेंडर कनिंघम को एक बार फिर इस जगह की यात्रा करनी पड़ी। अबकी बार उन्हें सूचना मिली थी कि यहां रेल लाइन बिछाने के दौरान खुदाई में कुछ आर्कियोलॉजिकल आर्टीफेक्टस मिले हैं।
दरअसल यहां कुछ मुहरें मिली थी। इन मुहरों के ऊपर वृषभ यानी सांड की आकृति और कुछ, अक्षर अंकित थे। लेकिन तब उन मुहरों की इंपोर्टेंस का अंदाज़ा किसी को नहीं था, खुद अलैक्जेंडर कनिंघम को भी नही।
अलैक्जेंडर कनिंघम, यही वो शख्स थे, जो आगे चलकर पुरातत्व और इतिहास के क्षेत्र के महान विद्वान हुए। उनकी उपलब्धियां ऐसी कि उन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का जनक कहा गया। इसके बाद दशकों तक उन मुहरों का ज़िक्र कहीं किसी ने नहीं किया। इस बीच कई इतिहासकार और पुरातत्व के जानकार इस जगह पर गए, लेकिन किसी ने भी वहां से मिली मुहरों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।
फिर साल आया 1921। इसी साल भारतीय आर्कियोलॉजिस्ट दयाराम साहनी ने अभी के पाकिस्तान में पड़ने वाले हड़प्पा की खुदाई शुरू की। ठीक उसी समय सिंध प्रांत में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो में खुदाई शुरू की। इन जगहों की शुरूआती खुदाई में कई आर्टीफेक्ट्स मिले और तब यह बात सामने आई कि यहां एक पूरी की पूरी सभ्यता दबी पड़ी है। इस तरह इन जगहों की खुदाई जोर-शोर से शुरू हुई। खुदाई में एक के बाद एक आर्टीफेक्ट्स और एविडेंस मिलते गए औरे धीरे-धीरे पूरे के पूरे शहर सामने आने लगे।
शुरूआत के कुछ सालों में सिर्फ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की ही खुदाई हो पाई। इसी बीच साल 1924 आते-आते इस सभ्यता से जुड़े इतने सबूत सामने आ चुके थे कि दुनिया को इसके बारे में बताया जा सके। उस वर्ष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक थे सर जॉन मार्शन। उन्होंने ही पूरी दुनिया को बताया कि भारतीय सभ्यता की प्राचीनता वेदों से कई हज़ार साल पीछे चली गई है। इस तरह एक नई सभ्यता दुनिया के सामने आई थी।
इस ऐलान के बाद समय बीतता रहा और इसके साथ ही सभ्यता की परिधि भी बढ़ती रही। साल दर साल नई-नई जगहें सामने आती गई। साल 1934 तक जॉन मार्शल ने और 1946 में मार्टिमर व्हीलर से लेकर आज़ादी के बाद भी भारत और पाकिस्तान के आर्कियोलॉजिस्ट मिलकर हड़प्पा और उससे जुड़े जगहों की खुदाई करते रहे। नतीजा यह निकला कि अभी के पाकिस्तान के कब्ज़े में पड़ने वाले बलुचिस्तान से लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर-प्रदेश तक इस सभ्यता की सीमाएं फैल गई। इस तरह पूरे क्षेत्र को मिलाकर कुल 12 लाख 99 हजार 6 सौ वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली यह सभ्यता विश्व की समकालीन सभ्यताओं में सबसे बड़ी सभ्यता बन कर उभरी।
ऐसे में इतने सालों की खुदाई के बाद जो कुछ भी सामने था, वह थी एक विशाल और अपने-आप में विकसित सभ्यता। इस सभ्यता को लेकर विद्वानों के अलग-अलग विचार थे, लेकिन एक बात थी जिस पर सभी विद्वान सहमत थे। वो थी कि यह सभ्यता एक विकसित नगरीय सभ्यता है।
यह वहीं सभ्यता है जिसे हम भारतीय सभ्यता की शुरूआत मानते हैं। जिसे आज सिन्धु-घाटी सभ्यता, सिन्धु-सरस्वती सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता जैसे नामों से भी जाना जाता है।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से शुरू हुई यह खुदाई आज भी बदस्तूर जारी है। आज भी नए-नए सबूतों के मिलने का सिलसिला रुका नहीं है। पिछले साल ही हरियाणा के राखीगढ़ी से मिले कंकाल ने इस सभ्यता को फिर चर्चा में ला दिया। इस नए सबूत के साथ ही इस सभ्यता के लोगों के ओरिजन को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई।
तो चलिए चलते है विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक सिंधु- घाटी सभ्यता के सफर पर और जानते हैं हमारे अतीत की वो सारी कहानियां, जिसने लगभग छः हजार साल पहले हमारे इतिहास को एक नया मोड़ दिया और हमारे आज का आधार बना। मिलते अगले हिस्से में…
जागृति राय :
गाजीपुर की रहने वाली हैं । दिल्ली वाला नहीं, उत्तर-प्रदेश वाला। लिखने-पढ़ने का शौक है औरयह शौक ही अब तक के सफर की वजह भी है। व्यंग में रूचि है, साहित्य में दिलचस्पी है। और डीप फेक के दौर में लोगों तक फैक्ट पहुंचाने में विश्वास है।