पं दीनानाथ एवं किसान केशव गाव मे एक सफल पडोसी माने जाते थे,पं जी गाव के ही पाठशाला मे अध्यापक थे,और किसान केशव एक अनपढ सीमित समझ वाला मेहनती व ईमानदार व्यक्ति था जिसके लिये हल व बैल ही सब कुछ थे।
दोनो परिवार का व्यौरा कुछ इस प्रकार है, पण्डित जी के माता पिता सहित पत्नी एवं एक बेटा किशोर व एक बेटी अंजना थी।दोनो पिता के विद्यालय मे अध्ययनरत थे। तथा केशव के यहा उसके मा-बाप उसकी शादी एक अनपढ लडकी सुखिया से करवाकर यह आशीर्वाद देकर परलोक सिधार गये कि “दूधो नहाओ,पूतो फलो” मगर गरीब केशव व उसकी पत्नी को दूध पीने को नही मिलता था नहाये क्या पर पूतो अवश्य फली और यहा तक कि पूत फल के इन्तजार मे पाच बेटिया फली तथा शुभचिन्तक पडोसी मित्र पण्डितजी के समझाने का कोई असर नही हुआ क्योकि सुखिया व केशव को तो पुत्र के हाथो दाह संस्कार करवा के बैकुण्ढ जाने की चाहत थी, वो समझ ही नही पाया कि “छोटा परिवार;खुशिया आपार”।
बहरहाल उसकी दकियानूशी पुरातनपंथी विचारधारा ने पाच पुत्रियो के बाद दो बेटे भी दिये, कुल सदस्य हुये नौ, और कमाने वाला किसान केशव।
जब पहली बिटिया स्कूल जाने लायक हुई थी तभी पण्डितजी ने अपने पडोसी मित्र को सलाह दिया की बेटी का दाखिला मेरे ही स्कूल मे करा दो तो दो अछर पढना लिखना सीख लेगी पर सुखिया और बेचारे केशव को लगा कि बच्चे खेतो मे ही काम करे तो ज्यादा उपज होगी और आखिरकार दूसरे के घर जाकर चूल्हा चौका ही करना है। क्या करते पण्डितजी समय बीतता गया और केशव की बडी बेटी जवान होने को आई, सुखिया को “शिक्षारानी” की शादी की चिन्ता होने लगी अतः उसने इस बात की चर्चा केशव से कि या तो केशव ने कहा कि शहर मे फसल बेचने जहा जाता हू वहा मेरे मित्र का लडका है वही माल गोदाम मे मुनीम है पढालिखा है वहा मैने बात कर रखी है, यह सुन सुखिया खुश हो गई और बोली कि तुम कल ही जा कर तय पक्का कर आओ जवान बेटी घर बिठाना ठीक नही फिर अभी और बेटिया भी तो है।
क्या करता केशव गया दूसरे दि शहर को और अपने मित्र से चर्चा की जब बात लडके तक पहुची तो वह शहरी लडका बिना लडकी से मिले और बात किये शादी को राजी न हुआ। अतः लडकी देखने-दिखाने की तारीख तय हुई और जब दिन आया तो शहरी बाबू पहुचे गये लडकी देखने।
औपचारिकता निभाते हुये पण्डितजी ने सब का परिचय कराया तो लडका इतना बडा परिवार देख नाक भौ सिकोडने लगा फिर भी लडकी पेश हुई परम्परानुसार बनावटी साजो सामान सहित और मा ने बडाई कि बेटी के हुनर-कौशल की ।
पर पढालिखा लडके ने नाम पूछा तो डरी सकुचाई गाव की लडकी ने बताया”शिक्षारानी” लडके ने सोचा लडकी सुन्दर है गृह कार्य मे दक्ष है जरूर पढीलिखी होगी और उसने पूछ लिया “कहा तक पढी है आप”? क्या जवाब दे बेचारी और क्या जवाब दे सुखिया व केशव, माजरा समझ तत्काल पण्डितजी ने कमान सभाली और बोले”बेटा हम अपनी लडकी को पढा नही पाये”
बेहिचक नकार दिया अमित ने लौट गया अपने घर।
पैर तले की जमीन खिसकती महशूस हुई केशव उसे इस बात की जरा भी आशंका नही थी वरना इतने रिश्तेदार व गाव वालो को नही बुलाता वह खडा रह गया किम्- कर्तव्यविमूढ सा। क्या करे वह उसकी तो नाक कट जायेगी गाव समाज सगे संबंधियो मे।
पूरा माजरा समझ पण्डितजी ने किसान केशव की तरफ देखा और एक निर्णय लेते हुये बोले “तुम लग्न रखवाओ, किशोर की शादी शिक्षा बिटिया से होगी मगर……..?”
आश्चर्य का ठिकाना न रहा केशव के “क्या मेरी नाक बचाने स्वयं परमात्मा आ गये है” और पण्डित जी के पैरो मे गिर कर रोने लगा कि रूक क्यो गये पण्डितजी पूरा करिये अपना वाक्य क्या मगर…….मै जो कहे दहेज देने को तैयार हू।
पण्डितजी गंभीरतापूर्वक बोले- ” हा! केशव मुझे दहेज चाहिये और दहेज मे सिर्फ इतना ही चाहिये कि तुम अब मेरी बेटी शिक्षारानी और सभी बच्चो को आगे पढाओ लिखाओगे। पाठशाला भेजोगे, बस।
गिर पडा केशव पण्डितजी के चरणो मे यह देख पण्डितजी ने अपने पडोसी मित्र को उठाया और गले से लगा लिया क्योकि वे अब पडोसी मित्र ही नही, अब वे थे समधी।
द्वारा _ सुधीर सिंह चंदेल