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मंगल ग्रह पर जीवन

नेताजी की कुर्सी

by वैभव मिश्रा

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आज काफी जद्दोजहद के बाद नेताजी को कुर्सी पर बैठने का सौभाग्य मिला जिसे उन्होंने बेबाकी से झूठ बोलकर धर्म , जातिवाद का चोगा पहने अपने समझदार वोटरों से हासिल किया था !
नेताजी का चापलूसी की मालाएं पहनाकर जोरोशोरों से स्वागत किया गया !
नेताजी हाथ जोड़े फरियादियों की उम्मीदों को कुचलते हुए शान से कमरे में प्रवेश करते हैं । सामने चमचमाती कुर्सी देखकर उनका चेहरा दमक उठता है ।
बड़े ही प्रफुल्लित मन से नेताजी बैठते हैं कुर्सी पर !
पर यह क्या  ! कुर्सी तो डगमगाने लगी !
 नेताजी शर्म से लाल पीले पड़ गए और भीड़ अचंभित होकर फुसफुसाने लगी !
लोगों ने देखा कि कुर्सी का एक पाया नीचे से टूटा हुआ था जिससे वह डगमगा रही थी !
तभी एक समर्थक नें तुरंत नेता जी का ध्यान खींच कहा ” अरे ! रामसेवक बढ़ई को बुलाना चाहिए । बाहर खड़ा है हाथ जोड़कर ! आज ही लड़के की सौगन्ध खाकर कहा था कि अगर उसकी दुकान नेताजी खुलवा दें (जो उनके ही किसी चहेते बाहुबली ने बंद करवा दी थी हफ्ता न मिलने के चलते )तो जिंदगी भर एहसानमन्द रहेगा नेताजी का..!”
नेताजी का इशारा भर पाते ही समर्थक  दौड़े पड़े ।
बुलावा पाकर रामसेवक की आँखों में खुशी के आंसू भर गए परंतु अंदर पहुंचते ही
सारे आसूँ जम गए !
नेताजी उसे देख चहककर बोले ” अरे ओ रामसेवक !
चल सही कर जल्दी इसे , दुकान चाहिए ना तुझे ! “
पर रामसेवक खाली हाथ आया था यह सोच कर कि नेताजी उसके हाथ में दुकान की सौगात रखेंगे ! सबकी निगाहें उसपर टिक गईं ! अब अगर वापस गया तो दुकान गई ही , जमीन भी ले लेंगे ये गुर्राते हुए समर्थक ! खैर , जब  कुछ उपाय नहीं सूझा तो बिचारा तुरंत टूटे हुए पाए के नीचे लेट गया..!
 सभा अचंभित उसके सेवाधर्म से !
पर नेताजी ने कहा “अरे मूरख अभी भी डगमगा रही है । कैसे लेटा है तू “
यह सुनकर  स्वाभिमान से उभरी छाती खिसकाकर उसने पाए के नीचे टिका दी ,
और कुछ इस तरह कुर्सी हो गई फिट !
नेताजी फूले नहीं समा रहे थे और नीचे वो सहिष्णु लेटा हुआ था बिना हिलेडुले , क्योंकि इतने सालों बाद नेताजी की स्वीकारोक्ति ने उसकी आशाओं के बुझ चुके दीपक की लौ वापस ला दी थी , वह बात अलग है कि नेताजी की दी हुई इसी लौ से निकली लपटों ने कितनों की जिंदगियां और घर जलाकर राख कर दी ये अनुमान लगाना थोड़ा कठिन है !
समर्थक उसे कुचलते हुए बड़े शान से नेताजी को मालाएं पहननाते रहे !
काफी देर बाद जब चापलूसी का सिलसिला खत्म हुआ तब नेताजी जी उठे ।
पर रामसेवक नहीं उठा.!
नेताजी सकपकाकर बोले
 “अरे ओ रामसेवक !
हम खुश हुए तेरे सेवाभाव से ,
उठ और ले अपनी दुकान “
पर नहीं , अब उस
 ठंडे पड़ चुके शरीर को दुकान की आस नहीं रही !
रामसेवक मर चुका था उसी आशाओं के दीपक की लौ में जलकर जिसे आग नेताजी ने दी थी !
अगले दिन पेपर में छपा “नेताजी की सेवा में समर्पित रामसेवक का निधन “!
आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुआ और पता चला कुर्सी का पाया  विपक्षी ने तुड़वाया था सोची समझी साजिश के तहत , जिसका अन्त रामसेवक जैसे कितने ही भोली भाली जनता की “हत्या” के साथ होता जा रहा है आज भी !
~ वैभव मिश्रा

  • ध्यान दें : इस मंच पर प्रतिभागियों द्वारा भेजी गई मौलिक रचनाओं को प्रकाशित किया जाता है। हम इन रचनाओं की मौलिकता की पुष्टि नहीं करते हैं।इस लेख में प्रकट किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और यह विचार हमारी सोच का प्रतिबिम्बित नहीं करते हैं।
  • चित्र : Global Live News
Tags: corruptionselectionsPoliticiansunemployementYoung India
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