बात वर्तमान से नहीं भविष्य से शुरू करते हैं।
मंगल ग्रह पर शर्मा जी को आये करीब 5 साल हो गए थे,वो यहाँ ये सोचकर आये थे कि कम से कम यहाँ उनके पड़ोसी गुप्ता जी रात के अंधियारे में उनके घर के सामने कचरा तो नही डाल कर जाएंगे और सुबह उनकी नींद दोनों घर की ग्रह मंत्रियों की तू तू मैं मैं से तो नही खुलेगी कि कचरा किसका है ?
लेकिन होनी को तो कुछ और मंजूर था।
पहला साल तो उनका बड़े शांति से गुजरा लोग कम थे अभी मंगल ग्रह पर तो बड़ी शांति और सुकून था,लेकिन जैसे जैसे वक़्त बीतता गया कुछ लोग अपने रिश्तेदारों को भी बुलाने लगे कि भाई आओ मंगल ग्रह पर तुम भी बस जाओ बड़ी शांति है तो बस धीरे धीरे साल दर साल भीड़ बढ़ती गई और कुछ लोग पृथ्वी पर इसलिए नही रुक पाए की उनका पड़ोसी मंगल पहुच गया तो हम कैसे रुक जायें।
शर्मा जी के पड़ोसी गुप्ता जी भी कमबख्त इसी बीमारी के शिकार हो गए थे, तो 2 साल पहले वो भी सारी गृहस्थी लेकर मंगल पर पहुँच गए, और किस्मत तो देखिए यहाँ भी वो अपने पड़ोसी शर्मा जी के पड़ोसी बन गये।
वैसे तो शर्मा जी अपने मंगल पलायन के बारे में किसी को बताना नही चाहते थे मोहल्ले में,लेकिन थी ही इतनी बड़ी बात की उनकी पत्नी के पेट मे बात रुक ही नही पाई,और आलम ये था कि मंगल पर जाने वाले एयरपोर्ट पर आधा मोहल्ला उनको छोड़ने आया था।
कुछ वक्त तो शर्मा जी भी खुश थे कि चलो इस गली में कोई अपना तो आया नहीं तो इस गली में चाइनीज और अंग्रेजो की भीड़ ज्यादा थी। पहले तो शर्मा जी ने गुप्ता जी का बड़े दिल से उनका स्वागत किया, दोनों अक्सर दोस्तो की तरह अक्सर सुबह और शाम की सैर पर निकलते थे, और कई दफा गली के नुक्कड़ पर यादव जी की चाय की दुकान पर चाय पीते थे ( अब आप ज्यादा सोचिये नहीं अब जब शर्मा जी और गुप्ता जी यहाँ आ गए तो यादव जी कैसे पीछे रह जाते,वो ये सोचकर आ गए कि अभी मंगल पर सुनहरा मौका है चलकर मस्त बड़ा सा होटल खोलेंगे और शान से जियेंगे,पर मामला कुछ जमा नहीं क्योंकि मंगल पर पहले ही विदेशी कंपनियां जैसे पिज़्ज़ा हट, डोमिनोस ने अपना कब्जा जमा लिया था,तो थोड़ा सोच विचार के वो नुक्कड़ पर चाय की दुकान खोल लिए।)
हां तो अक्सर चाय की टपरी पर दोनों पड़ोसी कभी पृथ्वी से आती खबरों पर चर्चा करते तो कभी मंगल की नई नई जगहों की ।
आज जब सुबह कुछ शोर सुनकर शर्मा जी की नींद खुली तो पहले तो उन्होंने खुद को याद दिलाया कि ये शोर उनके दिमाग से आ रहा होगा,पृथ्वी की पुरानी यादें होंगी,यहाँ भला मंगल पर कौन चिल्लायेगा सुबह सुबह इतनी जोर से।
लेकिन नहीं ये शोर तो यहीं से आ रहा था,और आवाज जानी पहचानी थी ,अरे ये आवाज तो उनकी पत्नी की थी, वो दौड़ के बाहर की तरफ भागे ये जान ने को हुआ क्या?
बाहर पहुँचते ही उन्होंने एक नजर अपनी पत्नी को देखा, एक नजर उन्होंने गुप्ता जी के दरवाजे पर खड़े चिल्लाती हुई उनकी पत्नी को देखा, और फिर नजरें आसपास घुमाकर देखा तो दोनों घर के बीच में पड़े कचरे के ढेर पर नजर गई।
वो बस अपना सिर पकड़े चुपचाप अंदर आये और वापस पृथ्वी पर जाने की तैयारी में लग गए।
एक महीने बाद आखिर वो पृथ्वी पर पहुँच ही गये अपने वतन अपनी जमीन , उस लाल ग्रह और गुप्ता जी को वही छोड़कर की अब यहाँ सुकून से रहेंगे।
लेकिन कुछ दिन बाद उनके फोन पर एक संदेश आया और एकदम से चिंतित हो गए।
तुरंत ही उन्होंने अपने ईमेल खोला और NASA और ISRO को एक साथ मेल किया कि, किसी और ग्रह पर जीवन संभव हुआ क्या,अगर है तो कृपा करके उन्हें जल्दी बताए।
उनकी चिंता का विषय बना संदेश कुछ इस प्रकार था।
“नमस्कार शर्मा जी,
बहुत खुशी हुई जानकर की आप पृथ्वी पर वापस खुशहाल जीवन जी रहे हैं, सच कहें तो यहाँ आपके जाने के बाद जीवन बाद नीरस से हो गया है,और यादव जी की चाय भी अब मजेदार नही लगती,इसलिए हमने और यादव जी ने निश्चय किया है कि जल्द ही हम दोनों भी पृथ्वी पर वापस आएंगे।
आपका घनिष्ठ मित्र,
गुप्ता जी और साथ में चाय वाले यादव जी भी””
-अस्मिता मौर्य
- इस मंच पर प्रतिभागियों द्वारा भेजी गई मौलिक रचनाओं को प्रकाशित किया जाता है। हम इन रचनाओं की मौलिकता की पुष्टि नहीं करते हैं।इस लेख में प्रकट किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और यह विचार हमारी सोच का प्रतिबिम्बित नहीं करते हैं
- चित्र – Treehugger