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LGBTQ Community: क्यों रेनबो झंडा खास है और प्राइड परेड ज़रूरी

LGBTQ Community: क्यों रेनबो झंडा खास है और प्राइड परेड ज़रूरी

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https://blog.unboundscript.com/wp-content/uploads/2021/09/jender-rango-se-bhari-duniya-LGTBQ-PART-2.mp3

Podcast: Play in new window | Download (Duration: 5:25 — 5.0MB)

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क्या है इंद्रधनुषी झंडे के रंगों का मतलब

तो इस इंद्रधनुष के रंग के दिखने वाले झंडे में दरअसल 6 रंग होते हैं। जिसमें लाल, नारंगी, पीला, नीला, हरा और बैंगनी रंग शामिल होता है। लेकिन शुरूआत में इस झंडे में कुल 8 रंग थे और यह सभी रंग जिंदगी के एक किसी न किसी रंग को दर्शाते थे। जैसे-

गुलाबी- सेक्शुएलिटी

लाल- ज़िंदगी

नारंगी- इलाज

पीला- सूरज की रोशनी

हरा- प्रकृति

फ़िरोज़ी- कला

नीला- सौहार्द्र

बैंगनी- इंसानी रूह

लेकिन बाद में इन रंगों को घटाकर छह कर दिया गया। फिरोजी रंग की जगह नीले रंग ने ले ली। वहीं बैंगनी रंग को हटा दिया गया।

अब सवाल उठता है कि इस झंडे को बनाया किसने था? तो जवाब है सैन फ्रांसिस्को के एक आर्टिस्ट गिल्बर्ट बेकर ने। इन्होंने एक स्थानीय कार्यकर्ता के कहने पर इस झंडे को समलैंगिकों को पहचान देने के लिए बनाया था। गिल्बर्ट बेकर ने इस झंडे में अलग-अलग रंगों को रखने के पीछे की वजह विविधता को बताया है। उनका कहना था कि वो इन सभी रंगों के माध्यम से बताना चाह रहे थे कि उनकी सेक्शुएलिटी उनका मानवाधिकार है।

इस तरह 1990 तक आते-आते यह झंडा दुनियाभर में LGBTQ समुदाय की पहचान बन गया। जो आज भी अपने रंगों में जेंडर की असीमित संभावनाओं को समेटे हुए है।

कैसे शुरू हुई प्राइड परेड?

बात तकरीबन 60 साल से ज़्यादा पुरानी है। वह समय था जब अमेरिका में समलैंगिकों ने सरकार के नियमों का विरोध करना शुरू कर दिया था। उस समय तक अमेरिका में समलैंगिकता को अपराध माना जाता था।

वैसे समलैंगिकता तो दुनिया के शुरूआत से ही थी। लेकिन इसको भी दूसरे जेंडर की तरह सामान्य माने जाने की लड़ाई शुरू हुई 1950 के दशक से। 1960 तक समलैंगिकों के अधिकार के लिए एक्टिविस्ट सड़कों पर उतरने लगे थे। इस समय तक अमेरिका में कुछ गे बार और गे बसेरे भी चलने लगे थे।

इस बीच 1969 में एक ऐसे ही बसेरे में पुलिस ने छापा मारा। जिसमें ढेर सारे गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर रहते थे। यहां से बहुत से लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन इस मामले ने थोड़े समय में ही तूल पकड़ लिया और देखते ही देखते अगली सुबह तक सैकड़ों समलैंगिक सड़कों पर उतर आए। इस तरह दुनिया के इतिहास में पहली बार ‘प्राइड परेड’ की घटना दर्ज़ हुई।

आज दुनिया के लगभग 40 से ज़्यादा देशों में प्राइड परेड होती है। इन देशों के तमाम शहरों में लोग इस दिन सड़कों पर रंगीन झंडों और साथियों के साथ एक बाहर निकलते हैं और जश्न मनाते हैं। जश्न अपने वज़ूद का, जश्न प्रकृति ने जैसा बनाया वैसे खुद को स्वीकार करने का।

भारत की बात करें तो दिल्ली में सबसे पहले इसकी शुरूआत हुई थी साल 2007 में। इसी तरह अब दूसरों शहरों में भी इसका आयोजन किया जाता है। जिसमें कोलकाता, बैंगलुरु, चेन्नई, गुरुग्राम, मुंबई, गुवाहाटी जैसे शहर शामिल है।

इस तरह प्राइड परेड एक गर्व है जो LGBTQ समुदाय महसूस करता है। यह समाज के बनाए जेंडर के सीमित परिभाषा को एक आईना है जो बताता है कि जेंडर का आसमान कितना बड़ा है। ऐसे में ज़रूरी है कि एक समाज के रूप में समाज के सभी अंगो के बारे में जाने और जानने से भी ज़्यादा ज़रूरी है कि हम खुद को संवेदनशील बनाएं। सामाजिक बराबरी के लिए हमारे पैमाने सभी के लिए एक जैसे हो और अंत में हमेशा यह याद रहे कि प्यार और सम्मान पर सभी समुदायों का बराबरी का हक़ है। जो किसी भी कीमत पर किसी से छीना नहीं जा सकता।

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