आज बहुत समय पश्चात मैं साँयकाल दालान में चाय का रसास्वादन करने बैठा था , अभी दो-तीन चुस्कियाँ ही ली होंगी की देखता हूँ कि मेरे कप में कहीं से एक मक्खी ने आकर जोरदार डुबकी मार दी है । पहले तो बहुत क्लेश हुआ , फिर उसे उसमें तैरते देखा तो ऐसी हँसी आई कि चाय का कप हिलकर थोड़ी चाय मेरे घुटने पर गिर गई ।
विधाता ने अगर मेरे घुटने को जीभ दी होती तो उसे जलने का मलाल नहीं होता । पर उफ्फ! चाय जाया हुई सो हुई , घुटने में क्षणिक अर्थराइटिस का एहसास अलग से हो आया । मैं तुरंत ही भाग कर बाथरूम में पहुँचा और ठंडे पानी से घुटना धोया । थोड़ी राहत हुई तो बाहर लौटा । चाय का कप उठाया तो देखा कि मक्खी की हरकतें बंद हो गईं हैं । नब्ज़ चेक की तो पता चला कि उसका दुखद निधन हो गया है । यद्यपि मुझे मक्खी से वैमनस्व ही था किंतु उसके यूँ सहसा चले जाने से मुझे दुःख ही हुआ । वैमनस्व मृतकों से तो निभ नहीं सकता (और उसके रिश्तेदार नजर आ नहीं रहे थे ) अतः चाय ना पी पाने के मलाल का अंत मैनें क्रोध पी कर ही कर लिया । बैठे-बैठे विचार आया कि ये मक्खी चाय में ही क्यूँ कूदी , पानी में क्यों नहीं ?या छत से क्यों नहीं कूद गई ? चाय भी थी कि लाल , दूध भी नहीं डाला था । मक्खी होती तो उसी से पूछ लेता , पर मरे हुओं के मुँहों पर ताले पड़ जाया करते हैं । अस्तु अपनी दुविधा का हल मुझे स्वयँ ही तलाशना था ।
देखा जाए तो कोई व्यक्ति कहीं कूदता क्यों है ? किन्हीं दो पक्षों के विवाद के मध्य बीच-बचाव के लिये कूद सकता है , किन्हीं दो लोगों की बातचीत में कूद सकता है , प्रेमिका से मिलने के लिए उसके घर की दीवार से कूद सकता है या सुसाइड के विचार से कहीं कूद सकता है । और इन चारों ही प्रकरणों में मृत्यु संभव है । तो पाठक ये सोचें की मक्खी क्यों कूदी ? और चाय में ही क्यूँ कूदी ? पहली दो बातें प्रासंगिक नहीं लगतीं । और मक्खी का कोई प्रेमी ( या प्रेमिका )रहा होता तो वो कहीं ओयो या ट्रीवागो का होटल तलाशने में व्यस्त होती , ( पार्क में बैठने के दिन लद गए हैं ) यूँ बाहर नहीं घूमती। प्रतीत होता है कि मक्खी के चाय में कूदने का मकसद सुसाइड ही था। लेकिन बेचारे , निरीह जीव को सुसाइड करने को विवश क्यों होना पड़ा ? और जैसा कि मैनें पहले भी कहा चाय ही क्यों , पानी क्यों नहीं ? चाय में ऐसा क्या जो पानी में नहीं ? वो है चीनी ! जहाँ चीनी ना हो वहाँ मिठास कैसी !? फिर चाहे मरना ही क्यों ना पड़े , चीनी के लिए आत्माहूति देने के लिए मक्खी सहर्ष प्रस्तुत थी।मक्खियों के कारण ही तो चीनी का बाज़ार सदाबहार है ।मक्खी अगर चीनी छोड़ देगी तो कहाँ बैठेगी ये भी आप जानते ही हैं । खैर ये तो मक्खी की ‘संवैधानिक आजादी’ है कि वो कहाँ बैठती है । अस्तु मक्खी को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए मैनें तय किया कि अब लालचाय नहीं पियूँगा । अनजाने में एक हत्या का पातक हो गया , इस ग्लानि में सारी रात सो नहीं पाया , अतः घरवालों को स्तंभित करते हुए मैं सुबह सात बजे ही नहा-धो कर समाचारपत्र लेकर बैठ गया । फ्रंटपेज पर बड़े-बड़े अक्षरों में छपा हुआ था , “चीनी भारतीय सीमा में घुसे “। मीडिया वाले भी सब उल्लू बनाते हैं , अब इन्हें कौन बताये , चीनी हमारी सीमा में नहीं हैं , चीनी तो हमारी चाय में है।
– शिवम द्विवेदी
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