देखा जाए तो नाक काटने की शुरुआत रामायण काल से ही हुई होगी , क्योंकि वही एकमात्र नाक काटने का प्रसंग आया था। तब से ही नाक काटने की प्रथा प्रचलित होगयी।
ख़ैर आधुनिक भारत मे भी नाक काटने की परंपरा बदस्तूर जारी है।
अरे रे रे! नाक कट गई मिड्ढा जी की,उनके बेटे को पुलिस पकड़ कर लेगयी।मियांजी जी के बेटी भाग गई ,कट गयी न नाक ,बहु तुम्हारे मायके वाले ढंग का इंतज़ाम नही कर सकते थे …??नाक काट गयी हमारी।घर की शादी है ,मय्यत नही, भारी साड़ी पहनो नही तो लोग क्या कहेंगे खन्ना जी की बहू को पहनने को कपड़े भी नही है?
मेरी एक बात समझ नही आती ,वह ये की हर छोटी-बड़ी बात पर नाक कट कैसे जाती है????. और अगर कट जाती है तो दुबारा जुड़ती कैसे है?गोया उससे भी बड़ा सवाल ये है कि नाक काटता कौन है?
मज़े की बात ये है कि गरीब की नाक छोटी से छोटी बात पर भी कट जाती है !हम जैसे मध्यम वर्गीय लोगों की नाक कटने की परिस्तिथियां थोड़ी भिन्न होती है और उच्च वर्ग के लोगों की नाक पहले तो आसानी से कटती नही, फिर अगर विशेष परिस्तिथ्यों में गलती से कट भी गयी तो आसानी से जुड़ भी जाती है , या यूं भी कह सकते है कि “उनकी कटी हुई नाक वापस उग जाती है ” छिपकली की पूंछ की तरह ….लेकिन अब आधुनिक समय मे विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि ,उच्च वर्गीय लोग सिलिकॉन की नाक रखते है …. जैसे ही कटी दूसरी लगा ली।अब ज़रा नाक उगने वाली बात पर गौर फरमाईये, नेताजी का चारा घोटाले में नाम आया है ,वो भी सभी अखबारों की सुर्खियों में पहले पन्ने पर, कायदे से उनकी भी नाक कटनी चाहिए थी, लेकिन ये क्या बड़ी सफाई से उन्होंने अपने कार्यकाल में इस मुद्दे को विपक्ष की साजिश बताके नाक बचाली, और इतने सालों में उनकी नाक काटना तो दूर उस पर कोई खरोंच भी नही आई।लेकिन सुना है अब नेताजी जेल में है हमे लगा नाक कट गयी होंगी….. और शायद इस बार थोड़ी कटी भी थी।लेकिन जैसा कि मैंने आप लोगों को पहले भी बताया था बड़े लोगों की नाक आसानी से नही कटती , और कट भी गयी तो दूसरी नाक उगा लेते है। ऐसी ही है नेताजी की नई नाक !असली वाली से लम्बी और तीखी।
आप सब से बस यही कहना है,नाक काटना तो हमारी परंपरा का हिस्सा है , काटते रहिये और कटवाते रहिये।दुखी होने की जरूरत नही आज कटी है तो कल जुड़ जाएगी… और हाँ ये भरम मत पालियेगा की जो एक बार नकटा होगया उसकी दुबारा नाक नही कट सकती।”हुज़ूर नाक कटने और जुड़ने का के सिलसिला अनन्त हैं, नाक कभी भी ,किसी की भी और किसी भी बात पर कट भी सकती है और कटवाई भी जा सकती है”, तो बस फिर क्या अब आनन्द लीजिये ,मौज कीजिये ,जो संसार का क्रम है जैसे चल रहा है चलने दीजिये और कटी हुई नाक की चिंता से मुक्त होजाइये।
– शीतल रघुवंशी
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