Podcast: Play in new window | Download (Duration: 9:02 — 8.3MB)
Subscribe: RSS
सुधा कितने दिन से टीचर्स डे आने का इंतज़ार कर रही है। इस बार उसने मैम के लिए कार्ड बनाया है। यूँ सुधा बहुत होशियार लड़की नहीं है पर पल्लवी मैम उसे कितना प्यार करती हैं। सुधा भी पल्लवी मैम को कितना तो चाहती है। हम जिन्हें प्यार करते हैं उन्हें हमेशा कुछ ऐसा देते हैं जिसे वह सहेज कर हमारी याद की तरह रख सके। अगले साल से सुधा का स्कूल ख़त्म हो रहा है। अब वह नए स्कूल में जाएगी। उसके मन में हज़ार सवाल हैं पर अब जब कोरोना शुरू हो गया है तो उसे समझ नहीं आ रहा कि मैम से कैसे बात करे? ऑनलाइन क्लास तो होती हैं पर उसमें तुम सब थोड़े ही पूछ सकते हो; उसमें सिर्फ़ पढ़ाई और पाठ के सवाल ही होते हैं। हर साल सब कितना अच्छा था न स्कूल में कितनी मस्ती होती इस दिन बच्चों और टीचर्स के बीच अंताक्षरी होती, सबको खाने के लिए मिलता, सब नाच-गाना करते और सबसे बेस्ट बात; इस बार तो उसे भी स्कूल में टीचर बनना था। उसने एक साल पहले माँ से उनकी खरीदी नई साड़ी भी यह कहकर ले ली थी- “माँ ये मेरे स्कूल का आख़िरी साल है और टीचर्स डे पर मुझे साड़ी पहननी है। यह साड़ी एक दम पल्लवी मैम की साड़ी जैसी है। बिल्कुल यही चाहिए मुझे उस दिन पहनने को। मैं टीचर्स डे वाले दिन पल्लवी मैम जैसा बनना चाहती हूँ, एक दम वही।” कितने जतन से उसने सारा साल वो साड़ी नई ही रखवाई थी कि उसे पहन सके। पर अब न तो स्कूल खुल रहे थे, न ही टीचर्स डे ही मनाया जाएगा।
पापा शाम को दफ्तर से आए तो आकर देखा कि सुधा का मुँह लटका हुआ है।
“क्या हुआ?”- पापा ने पूछा तो सुधा रुआँसी हो आई!
“पापा स्कूल कब खुलेंगे? एक तो ये बोर्ड के पेपर आने वाले हैं उस पर स्कूल भी नहीं खुल रहे। पल्लवी मैम होती तो वह उसको सब बताती कि उसे कितना डर लग रहा कैसे वह कुछ समझ नहीं पा रही, कैसे उसको ऑनलाइन क्लास में सवाल पूछने पर डर लग रहा है सब। एक पल्लवी मैम ही तो थी जो सुधा को समझ सकती थी।”
पापा ने उसे समझाया कि स्कूल अगर खुल भी गए तो बीमारी की वजह से हम नहीं भेजेंगे तुमको, जानती हो न कितना रिस्क है। यह सुनकर वह और रुआँसी हो आई। उसने माँ से कुछ गिफ्ट पल्लवी मैम के लिए ऑडर करवाए तब जाकर उसे कुछ अच्छा लगा।
आज पल्लवी मैम ऑनलाइन क्लास लेंगी। सुधा ने माँ के फोन से क्लास लॉग इन कर ली है। सामने पल्लवी मैम है उन्होंने कहना शुरू किया है। “तो अब शिक्षक दिवस आने वाला है तो हम आज बिल्कुल भी पढ़ाई की बात नहीं करेंगे।”
“तो क्या बात होगी?” सब बच्चों ने पूछा।
“आज हम बात करने वाले हैं कि कैसे हम अपनी मन की बात, सवाल अपने शिक्षकों से कर सकते हैं और हम शिक्षक दिवस कैसे मनाने वाले हैं। सबसे पहले मुझे बताओ किसे मेरे जैसा बनाना है एक दम?”
क्लास के कुछ बच्चों ने हाथ ऊँचा किया जिनमें से सुधा का हाथ सबसे ऊँचा था।
“गुड” पल्लवी मैम ने कहा फिर उन्होंने सुधा का नाम लिया।
“अच्छा सुधा तुम बताओ तुम्हें शिक्षक क्यों बनाना है?”
सुधा पहले तो कुछ शरमा गई कि कैसे कहे, क्यों बनना है; फिर उसने कहा – “मैं ना एक दम आपके जैसे बनना चाहती हूँ समझदार और सभी की बात समझने सुनने वाली। मैम आप न मुझे अपनी मम्मी से भी ज़्यादा पसंद हो।”
सुधा यह कहते हुए आसपास देखने लगी। कहीं मम्मी को मालूम हुआ तो उसकी क्लास न लग जाए। मैम ने सुधा से कहा – “देखो सुधा हर आदमी के अपने गुण हैं और कोई किसी की तरह नहीं होता; पर हाँ तुम अपना काम समय से करो, अपनी मेहनत से बच्चों को पढ़ाओ तो सब आसान हो जाता है। शिक्षक बनने में तुम्हें मज़ा भी आएगा और तुम अपना सीखा हुआ ज्ञान सब तक पहुँचा सकते हो पर उसके लिए तुम्हें लगन से पढ़ना चाहिए इतना कि तुम बाकी लोगों को भी सब समझा सको।”
सुधा और बाकी बच्चे मैम की बात ध्यान से सुन रहे थे। फिर एक ने नया सवाल किया, “मैम हम कैसे मनाने वाले हैं इस साल टीचर्स डे? “मैम ने सुझाया कि सब बच्चे अच्छे-अच्छे कपड़े पहनना और हम घर से ही कुछ खेल खेलेंगे। सब बच्चे अपनी पसंद के मैडम या सर बनना।”
फिर उन्होंने सबसे एक सवाल किया कि “यह बताओ पहले किस-किस को याद है कि हम टीचर्स डे क्यों मनाते हैं?”
सुधा ने सबसे पहले इस बार भी हाथ खड़ा किया अपने सबसे पसंद के दिन को वह कैसे भूल सकती सकती थी?
उसने कहना शुरू किया- “पाँच सितंबर को टीचर्स डे इसलिए मनाते हैं क्योंकि उस दिन हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिन होता है। उनके विद्यार्थियों ने एक दिन उनसे कहा कि सर हम आपका जन्मदिन मनाना चाहते हैं तो उन्होंने सभी को कहा कि “मुझे ख़ुशी होगी अगर मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। तब से इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।”
मैम ने अब सुधा को शाबाशी दी और आगे बताना शुरू किया- “विश्व के हर हिस्से में शिक्षक दिवस अलग-अलग दिन मनाया जाता है। यह देशों के हिसाब से होता है हमारे यहां जैसे सुधा ने कहा 5 सितंबर को मनाया जाता है। अब तुम सबके मन में सवाल होगा कि ऐसा क्यों? तो जैसे इतने दिन तुम्हें बिना स्कूल के कुछ सीखने को नहीं मिल सका और पढ़ाई नहीं हो पाई ऐसे ही सोचो अगर किसी दिन दुनिया में कोई शिक्षक न रहे तो?”
सब बच्चे सोच में पड़ गए !
एक ने कहा- “तो हम पढ़ेंगे कैसे और हमारे पेपर भी कैसे होंगे?”
“एक दम सही इसलिए तो शिक्षक जरूरी है अगर शिक्षक ही नहीं होंगे तो कोई पढ़ा नहीं पाएगा और पढ़ाई नहीं होगी तो न तो दुनिया में कोई डॉक्टर होगा न ही कोई आर्मी वाला और न ही कोई प्रधानमंत्री बनेगा। दुनिया को हमेशा से कोई न कोई सिखाने वाला रहा ही है। जब स्कूल नहीं थे तब भी गुरु-शिष्य परम्परा चली आ रही थी।”
क्लास का समय ख़त्म हो गया था पल्लवी मैम ने कल मिलने को कहा और क्लास अब ख़त्म हो गई थी। मैम की बातों का असर अभी बच्चों पर पड़ा था उन पर भी जो पढ़ने और पढ़ाने को बेकार का काम मानते थे।
अगले दिन सब क्लास में तैयार होकर आए थे। कोई सर बना था, कोई मैडम। सुधा ने माँ की आलमारी से साड़ी निकाल कर लपेट ली थी। आज वह पल्लवी मैम बनेगी तो क्लास को आज वह सम्बोधित करने वाली थी। उसने क्लास शुरू होते ही मैम को शुक्रिया कहा और सभी बच्चों ने उनको बारी-बारी शुक्रिया कहा। फिर क्लास शुरू की गई। सुधा ने पल्लवी मैम की तरह बोलना शुरू किया फिर पूरा एक घण्टा इधर-उधर की बातें हुई। मैडम ने उन्हें अपने स्कूल के दिनों की बातें बताई यह भी वे भी बहुत बार मन की सुनती।
क्लास ख़त्म होने में पाँच मिनट थे अब पल्लवी मैम ने कहना शुरू किया- “शुक्रिया इतने प्यार के लिए मैं आशा करती हूं तुम भी आगे चलकर जो बनो पर इतना ज़रूर याद रखना हर आदमी एक बढ़िया शिक्षक बन सकता है। उसके लिए किसी डिग्री की ज़रूरत नहीं है ज़रूरी है तो यह कि तुम दूसरों को अपना सीखा हुआ कितना सिखा सकते हो। सीखने-सिखाने की परंपरा ही गुरु-शिष्य परम्परा है। इसका स्कूल से कोई लेना देना नहीं इसलिए तुम सब बेहतरीन शिक्षक बनो यही कामना है।”
दिन ख़त्म हुआ आज सुधा ख़ुश थी उसने माँ को हैप्पी टीचर्स डे का कार्ड बनाकर दिया, पापा को भी विश किया। सब हैरान थे कि पल्लवी मैडम के अलावा वह किसी को इतना प्यार नहीं करती आज कैसे हुआ।
माँ ने कहा- “मैं क्या करूँ तेरे इस कार्ड का?”
तो सुधा ने कहा- “आपने ही तो मुझे बोलना सिखाया तो, दुनिया में सबसे पहले आप मेरी शिक्षक हुई न?”
यह सुनकर माँ की आँखों मे आँसू आ गए उन्होंने कभी अपनी माँ को ऐसा क्यों नहीं कहा?
सुधा ने पूछा अब क्या हुआ तो माँ ने सब बताया तो वह मुस्करा कर बोली- आपके पास पल्लवी मैडम नहीं थी इसलिए और घर में ठहाका तैरने लगा।
पूर्णिमा वत्स
जीने के लिए साँस से ज़्यादा कविता ज़रूरी है | पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ समय सक्रिय रही | विभिन्न्न जगह भिन्न -भिन्न अनुभव | कल्पना के बाहर की दुनिया से कोई लेना -देना नहीं| घोर काल्पनिक |साहित्य की विद्यार्थी हूँ | आकाशवाणी ,मैकमिलन प्रकाशन और कुछ समय तक फ्रीलांस अनुवादक के रूप में कार्य किया | कहानियाँ लिखती हूँ और कभी -कभी कहानियाँ मुझे लिखती हैं | घूमने की शौकीन |विश्व साहित्य से गहरा लगाव | सीखने और जीने की प्रक्रिया में |
कहानी बहुत ही सीधी ओर सच्ची है। एक अच्छे शिक्षक की परिभाषा के साथ बालमन के उन भावों को भी उद्बोधित करती है जो आज शायद हर विद्यार्थी के मन में हैं।शिक्षक को ऐसा ही होना चाहिए जिससे मन की हर बात कही जा सके …वो एक गुरु के साथ ही मार्गदर्शक भी है और एक सच्चा दोस्त भी…
बहुत शुक्रिया !